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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 4

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 4

मनुष्यता

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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
प्रश्न 1. कवि ने कैसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है?
उत्तर- कवि ने मनुष्य की मृत्यु को सुमृत्यु कहा है, जब मनुष्य अपने और अपनों के हित से पहले दूसरों का हित चाहता है और उनमें वे गुण होते हैं, जिनके कारण कोई मनुष्य मृत्युलोक से गमन करने के बावजूद युगों तक दुनिया की यादों में बचा रहता है।

प्रश्न 2. उदार व्यक्ति की पहचान कैसे हो सकती है?
उत्तर- यह असीम संसार में आत्मीयता का भाव रखने वाले व्यक्ति एक उदार व्यक्ति है। वह सभी जीवों के साथ अपनेपन का व्यवहार करता है और हर समय करुणा और सहानुभूति का भाव रखता है। ईमानदार व्यक्ति दूसरों की मदद करने के लिए अपने शरीर, मन और धन को किसी भी समय त्याग सकता है; वे अपना सब कुछ दूसरों की रक्षा के लिए त्याग सकते हैं। वह जाति, देश या रंग-रूप के भेद को छोड़कर सभी को अपना मानता है। वह अपनी खुद की क्षति के बावजूद दूसरों की मदद करता है। वह प्रेम, भाईचारा और उदार है।

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प्रश्न 3. कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर ‘मनुष्यता’ के लिए क्या संदेश दिया है?
उत्तर- कवि ने दधीचि और कर्ण जैसे महान लोगों का उदाहरण देकर मनुष्यता के लिए यह संदेश दिया है कि हर व्यक्ति को अपना सर्वस्व त्यागने से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। इन लोगों ने दूसरों की भलाई के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया। दधीचि ने अपनी अस्थियों का, और कर्ण ने कुंडल और कवच का दान दिया था। हमारा शरीर नश्वर है, इसलिए इसे मोह से दूर करके दूसरों की सेवा करना ही इसका मूल्य है। कवि ने यही भावना व्यक्त की है।

प्रश्न 4. कवि ने किन पंक्तियों में यह व्यक्त किया है कि हमें गर्व-रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए?
उत्तर- कवि ने दधीचि और कर्ण जैसे बड़े लोगों का उदाहरण देकर सभी को त्याग और बलिदान का संदेश दिया है। सभी अपने लिए जीते हैं, लेकिन परोपकार के लिए जीता और मरता है, उसका जीवन शुभ होता है। पौराणिक कहानियों में दधीचि ऋषि ने देवताओं को वृत्रासुर से बचाने के लिए अपनी अस्थियों तक दे दी। इसी तरह कर्ण ने अपने शरीर से अलग करके अपने जीवन-रक्षक, कवच-कुंडल को दान में दिया था। भूखे ब्राह्मण को रंतिदेव नामक दानी राजा ने अपना हिस्सा भोजन दिया। राजा शिवि ने कबूतर के प्राणों को बचाने के लिए अपना मांस काटकर दे दिया।

ये कहानियाँ हमें दयालुता का पाठ सिखाती हैं। ऐसे महान लोगों का त्याग ही मनुष्य जाति का कल्याण कर सकता है। कवि ने कहा कि मनुष्य को इस नश्वर शरीर से मोह त्यागना चाहिए। उसे सिर्फ दान देना चाहिए। सच्चा व्यक्ति वही होता है, जो दूसरों के लिए अपना सब कुछ त्याग देता है।

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प्रश्न 5. ‘मनुष्य मात्र बंधु है’ से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- इस कथन का अर्थ है कि सभी लोग एक दूसरे से भाई-भाई हैं, इसलिए हमें किसी से भी भेदभाव नहीं करना चाहिए। सभी देवता एक हैं। यद्यपि कुछ भेद दिखाई देते हैं, तो वे सभी बाहरी भेद हैं और वे भी अपने-अपने कार्यों के अनुसार दिखाई देते हैं। “वसुधैव कुटुम्बकम्” का नारा दिया जाता है क्योंकि सब लोग एक ही बंधु हैं। प्रत्येक व्यक्ति को हर कमजोर व्यक्ति की पीड़ा दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए। सभी एक दूसरे से भाई-चारे की भावना से रहें, और प्रेम और एकता हर जगह फैल जाएं।

प्रश्न 6. कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा क्यों दी है?
उत्तर- कवि ने सबको मिलकर चलने की प्रेरणा दी है क्योंकि इससे आपसी मेल-जोल बढ़ता है और सब कुछ कामयाब होता है। यदि हम सभी एकजुट होकर चलेंगे, तो जीवन के रास्ते में आने वाली हर चुनौती को पार कर सकेंगे। जब सभी लोग मिलकर प्रयास करते हैं, तो वह सफल होता है। प्रत्येक व्यक्ति का हित ही सबका हित है। प्रेम और सहानुभूति के संबंध बनते हैं जब आपस में एक-दूसरे का सहारा बनकर आगे बढ़ते हैं, तो शत्रुता और भिन्नता दूर हो जाते हैं। मानवता इससे बल प्राप्त करती है। कवि ने कहा कि एक दूसरे का साथ देने से प्रगति संभव है।

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प्रश्न 7. व्यक्ति को किस प्रकार का जीवन व्यतीत करना चाहिए? इस कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर- व्यक्ति को अपने जीवन को दूसरों की सेवा करते हुए, मानवमात्र को अपना बंधु मानते हुए और दूसरों के हित के लिए अपना सब कुछ त्याग देकर जीना चाहिए। इसके अतिरिक्त, उसे अपने निर्धारित लक्ष्य की ओर निरंतर संघर्ष करते रहना चाहिए।

प्रश्न 8. ‘मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर- मानव जीवन अद्वितीय है क्योंकि इसमें प्रेम, त्याग, बलिदान और परोपकार का भाव होता है। मानवों का कर्तव्य है कि वे अपने से अधिक दूसरों की सुरक्षा करते हुए अपनी शक्ति, बुद्धि और वैचारिक क्षमता का उपयोग करें। कवि अपनी कविता में सहानुभूति, सहानुभूति, सद्भाव, उदारता और करुणा का संदेश देना चाहता है।

वह चाहता है कि लोगों को पूरे विश्व में अपना स्थान महसूस हो। वह गरीबों और गरीबों के लिए बहुत कुछ त्याग करने को तैयार रहे। पौराणिक कथाओं में दधीचि, कर्ण और रंतिदेव के अद्भुत त्याग से प्रेरणा मिलती है। मृत्यु के बाद भी अच्छे काम करो। उसके शरीर का यश सदा जीवित रहेगा। मनुष्यता का असली अर्थ है निःस्वार्थ भाव से जीवन जीना, दूसरों के काम आना और स्वयं ऊँचा उठने के साथ-साथ दूसरों को भी ऊँचा उठाना।

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(ख) निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए-
प्रश्न 1. सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही;
वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही।
विरुद्धवाद बुद्ध का दया-प्रवाह में बहा,
विनीत लोकवर्ग क्या न सामने झुका रहा?
उत्तर- इन पंक्तियों का भाव है कि हर व्यक्ति को अपने जीवन में कभी भी आने वाले दुख-दर्द में सहानुभूति होनी चाहिए, क्योंकि सहानुभूति की प्रवृत्ति से एक-दूसरे के दुख-दर्द का बोझ कम हो जाता है। वास्तव में सहानुभूति का गुण महान धन है। पृथ्वी भी सहानुभूति और दया के कारण सदा से वशीकृत रही है।

बनाया गया है। भगवान बुद्ध ने भी करुणावश का विरोध किया, जो उस समय की सामान्य धारणा थी। किसी को झुकाने के लिए विनम्र होना आवश्यक है। उदाहरण के लिए, एक फलदार पेड़ और एक संत हमेशा लोगों को अपनी सादगी से प्रोत्साहित करते हैं।

प्रश्न 2. रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,
सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।
अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं,
दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।
उत्तर- कवि ने कहा कि धनवान होने पर भी कभी गर्व नहीं करना चाहिए।

क्योंकि ईश्वर ही परमपिता है, यहाँ कोई अनाथ नहीं है। धन और परिवार से घिरा हुआ व्यक्ति स्वयं को सनाथ महसूस करता है। इससे वह अपने आप को सुरक्षित समझने लगता है। इसलिए वह अभिमानी होता है। कवि कहता है कि संपूर्ण मानव जाति के कल्याण के लिए मरने और जीने वाले सच्चा मनुष्य हैं। वह अपने शरीर को भी आवश्यकता पड़ने पर दे देता है।
भगवान सृष्टि का नाथ और संरक्षक हैं, और उनकी शक्ति असीम है।

वे अपने अपार संसाधनों से सभी को बचाने और पालन करने में सक्षम हैं। वह प्राणी भाग्यहीन है क्योंकि वह अधीर, अशांत, असंतुष्ट और अतृप्त रहता है और अधिक पाने की ललक में मारा-मारा फिरता है। यही कारण है कि किसी को अपनी समृद्धि पर कभी गर्व नहीं करना चाहिए।

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प्रश्न 3. चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए,
विपत्ति, विघ्न जो पड़े उन्हें ढकेलते हुए।
घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी,
अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।
उत्तर- इन पंक्तियों से पता चलता है कि व्यक्ति को अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए खुशी से बाधाओं का सामना करना चाहिए। आपसी भेदभाव को दूर करने के लिए, इस रास्ते पर चलते हुए आपस में भाई-चारे की भावना विकसित करो। इसके अलावा, बिना किसी बहस के सतर्क होकर इस दिशा में चलना चाहिए।

योग्यता विस्तार

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प्रश्न 1. अपने अध्यापक की सहायता से रंतिदेव, दधीचि, कर्ण आदि पौराणिक पात्रों के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर-
रंतिदेव- भारत के विख्यात राजा थे। एक बार भूख लगी। उस अकाल से कुएँ और तालाब सूख गए। पत्तियां सूख गईं। राजकोष का अनाज भंडार समाप्त हो गया है। रतिदेव, एक दयालु राजा, अपनी जनता की पीड़ा को नहीं देखा। आखिरकार, लोगों के सुख-दुख को वे अपना दुख समझते थे। उनके लोगों को अनाज मिलना शुरू हुआ।

जनसंख्या की बड़ी मात्रा के सामने अनाज की कमी होने लगी, जो अंततः समाप्त हो गई। अकाल के कारण अब राजपरिवार को भी आधा पेट खाना पड़ता था। ऐसा हुआ कि राजा को भी कई दिनों से भोजन नहीं मिला। राजा को ऐसी स्थिति में कई दिनों बाद खाने के लिए कुछ रोटियाँ मिलने पर एक भूखा व्यक्ति दरवाजे पर आया। राजा ने उसे खाना खिलाया बिना देखे। ऐसी मान्यता है कि ईश्वर ने उनके कार्यों से प्रेरित होकर उनका भंडार भोजन से भर दिया।

दधीचि- भारत के परमदानी और ज्ञानी ऋषि इनका उल्लेख करते हैं। दधीचि ने बहुत कुछ दूसरों के लिए किया था। वे तपस्या करते रहे। उन्हीं दिनों देवता इंद्र उनसे मिले। दधीचि ने साधना पूरी करके इंद्र से अपने आने का कारण पूछा। ऋषिवर! आप तो जानते ही हैं कि देवताओं और दानवों में युद्ध चल रहा है, इन्द्र ने कहा। दानव इस युद्ध में देवों पर भारी हैं। देवताओं का विनाश निकट है। दानवों का स्वर्गलोक और पृथ्वी पर भी कब्जा हो जाएगा अगर कोई उपाय नहीं किया गया। “देवराज इसमें मैं क्या कर सकता हूँ?” ऋषि ने पूछा। लोगों का भला चाहते हुए मैं सिर्फ तप कर सकता हूँ।

इंद्र ने कहा, “मुनिवर, यदि आप अपनी हड्डियाँ दे दो तो इनसे बज्र बनाकर असुरराज वृत्तासुर को पराजित किया जा सकेगा और देवगण युद्ध जीत सकेंगे।” इंद्र की बातें सुनकर दधीचि ने अपनी साँस ऊपर खींची, जिससे उनका शरीर निर्जीव हो गया। उनकी हड्डियों से बना वज्र ने देवताओं को हराया और असुरों को मार डाला। दधीचि ने अपने अद्भुत त्याग से अमर नाम कमाया।

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कर्ण- यह राजकुमार बहुत वीर, साहसी और धनी था। सूर्य के वरदान से जन्मे अर्जुन का भाई और कुंती का पुत्र था। उसे मारना या हराना मुश्किल था क्योंकि सूर्य ने उसे बचाने के लिए जन्मजात कवच-कुंडल दिया था। कर्ण इतना दयालु था कि द्वार पर आए किसी को खाली हाथ नहीं लौटने देता था। महाभारत युद्ध में कर्ण ने दुर्योधन का साथ दिया था। कृष्ण और इंद्र ने कर्ण को पराजित करने के लिए ब्राह्मण का रूप लेकर उससे कवच और कुंडल माँगा। यद्यपि कर्ण जानता था कि यह उसे मारने की एक चाल है, फिर भी उसने कवच-कुंडल दान दिया और अपनी मृत्यु की परवाह किए बिना अपना वादा निभाया।

प्रश्न 2. ‘परोपकार’ विषय पर आधारित दो कविताओं और दो दोहों का संकलन कीजिए। उन्हें कक्षा में सुनाइए।
उत्तर-
‘परोपकार’ विषय पर आधारित कविताएँ और दोहे-
कविता- औरों को हँसते देखो, मनु, और खुशी पाओ।
सबको खुश करो और खुश रहो।
विद्यार्थी पुस्तकालय से काव्य पढ़ें। (कामायनी, जयशंकर प्रसाद से)

दोहे- उपकारी के साथ रहिम सुख मिलता है।
जैसे मेहदी को रंग, बाँटन वारे को लगै।
तूफान फल नहीं खाता, नदी नीर नहीं खाती।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर।

परियोजना कार्य

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प्रश्न 1. अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध’ की कविता ‘कर्मवीर’ तथा अन्य कविताओं को पढ़िए तथा कक्षा में सुनाइए।
उत्तर- विभिन्न बाधा देखकर घबराते नहीं हैं।
रह भरोसे भाग्य के पीछे पछताते नहीं हैं।
कितना भी कठिन काम हो, वे थक नहीं जाते।
भयभीत होकर भीड़ में घुस गए, जो वीर नहीं दिखते।
उनके बुरे दिन भी एक आन में चले गए।
वे हर जगह हर समय फूले फले।
यही आज आपको करना है।
सोचने और करने का अर्थ है वही।
उनके बुरे दिन भी एक आन में चले गए।
वे ही फूले-फले हर जगह हर समय मिलते हैं।
(हरिऔध, अयोध्या सिंह उपाध्याय)

प्रश्न 2. भवानी प्रसाद मिश्र की ‘प्राणी वही प्राणी है’ कविता पढ़िए तथा दोनों कविताओं के भावों में व्यक्त हुई समानता को लिखिए।
उत्तर- छात्र भवानी प्रसाद मिश्र की कविता “प्राणी वही प्राणी है” को पुस्तकालय से या इंटरनेट से डाउनलोड करें और दोनों कविताओं के भावों की तुलना स्वयं करें।
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अन्य पाठेतर हल प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. ‘विचार लो कि मर्त्य हो’ कवि ने ऐसा क्यों कहा है? इसे सुमृत्यु कैसे बनाया जा सकता है?
उत्तर- कवि ने मनुष्य से मर्त्य होने की बात इसलिए कही है कि-

मानव शरीर नष्ट नहीं हो सकता। यह दुनिया में जन्मे हर व्यक्ति को एक दिन मरना ही है।
मनुष्य चाहकर भी अपनी मृत्यु को रोक नहीं सकता।

मानव अपनी मृत्यु को सुमृत्यु बना सकता है यदि वह अच्छे काम करके और दूसरों के प्रति सहानुभूति दिखाते हुए परोपकार करता है।

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प्रश्न 2. कवि किसके जीने और मरने को एक समान बताता है?
उत्तर- इस दुनिया में हर दिन हजारों लोग मरते हैं। उन्हें मरने के कुछ दिन बाद लोग भूल जाते हैं। ये लोग सिर्फ अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए जीवित रहते हैं। उन्हें दूसरों के दर्द से कुछ लेना-देना नहीं है। ऐसे लोगों की मृत्यु से कुछ लेना-देना नहीं है क्योंकि वे दूसरों के बारे में नहीं सोचते हैं। आत्मकेंद्रित होकर अपने स्वार्थ के लिए काम करने वालों के जीवन और मौत को एक समान बताया है।

प्रश्न 3. “अखंड आत्मभाव भरने’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर- कवि अखंड आत्मभाव भरने के माध्यम से यह कहना चाहता है कि लोग एक-दूसरे से वैमनस्य, ईष्र्या, द्वेष जैसे भाव नहीं रखें, और विश्वव्यापी एकता को बनाए रखने के लिए सभी को अपना भाई मानें। प्रायः लोग जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्रवाद और संप्रदाय जैसे संकीर्णताओं में फँसकर किसी को भाई भी नहीं मानते। कवि सभी लोगों के साथ आत्मीयता बनाने की बात करता है और इसी संकीर्णता को त्याग देता है।

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प्रश्न 4. मनुष्य किसी अन्य को अनाथ समझने की भूल कब कर बैठता है?
उत्तर- धन मिलने पर लोगों को गर्व महसूस करना स्वाभाविक है। पूरी तरह से अहंकारी हो जाता है और व्यवहार करता है। धन को देखकर कुछ लोग उसकी प्रशंसा करने लगते हैं। ऐसे में अमीर व्यक्ति खुद को शक्तिशाली मानने लगता है। धन और बल मिलते ही वह अनैतिक व्यवहार करता है। वह दूसरों को अपने से कमजोर और अनाथ मानने लगता है।

प्रश्न 5. हमें किसी को अनाथ क्यों नहीं समझना चाहिए?
उत्तर- ईश्वर से बल और शक्ति पाकर हम स्वयं को सनाथ समझते हैं, तो दूसरों को अनाथ नहीं समझना चाहिए। उसके लंबे हाथ सदैव मदद करते हैं। उसकी अपार शक्ति के कारण हमें किसी को अनाथ नहीं समझना चाहिए क्योंकि वह सदा दूसरों की मदद करने को तैयार रहता है।

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प्रश्न 6. उशीनर कौन थे? उनके परोपकार का वर्णन कीजिए।
उत्तर- गांधार के राजा उशीनर थे। Shiva भी उनका नाम है। जब वे बैठे थे, एक कबूतर बाज से भयभीत होकर शिवि की गोद में आ दुबका। इसी बीच, बाज शिवि के पास आकर अपना शिकार वापस माँगने लगा। उसने राजा से कबूतर के वजन के बराबर माँस माँगा जब राजा ने उसे वापस देने से मना किया। राजा ने इसे सहर्ष मान लिया। राजा एक कबूतर पर दया करने के लिए जाना जाता था।

प्रश्न 7. कवि ने महाविभूति किसे कहा है और क्यों?
उत्तर- कवि ने सहनशीलता को महाविभूति बताया है। इसका कारण यह है कि सहानुभूति मनुष्य को दूसरों की पीड़ा महसूस कराती है और उसे परोपकार करने की प्रेरणा देती है। यदि मनुष्य में सहानुभूति नहीं है, तो चाहे वह खुश या दुखी हो, वह उदासीन रहेगा और परोपकार करने की सोच भी नहीं सकता।

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प्रश्न 8. अपने लिए जीने वाला कभी मरता नहीं’ कवि ने ऐसा क्यों कहा है?
उत्तर- ‘अपने लिए जीने वाला कभी नहीं मरता।’ कवि ने कहा कि जो लोग परोपकार करते हैं, दूसरों की भलाई में लगे रहते हैं और अपने-पराए का भेद किए बिना दूसरों के काम आते हैं, वे अपने कर्मों के माध्यम से अमर होते हैं। ऐसे लोग मरकर भी चर्चा में रहते हैं। यह दिखाता है कि वे अभी भी जीवित हैं।

प्रश्न 9. कवि ने सफलता पाने के लिए मनुष्य को किस तरह प्रयास करने के लिए कहा है?
उत्तर- कवि ने लोगों को सफलता पाने के लिए कहा कि मनुष्य तुम अपने लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाओ। बहुत से मनुष्य देवताओं की तरह खड़े हैं, जो आपकी मदद करेंगे। इसके अलावा, आप एक दूसरे की मदद करते हुए उठते हैं और सभी को एक साथ लेकर आगे बढ़ते हैं। इससे कोई लक्ष्य हासिल करना कठिन नहीं रह जाएगा।

प्रश्न 10. ‘रहो न यों कि एक से न काम और का सरे’ के माध्यम से कवि क्या सीख देना चाहता है?
उत्तर- कवि, “रहो न यों कि एक से न काम और का सरे” के माध्यम से लोगों को यह सिखाना चाहता है कि, हे मनुष्य! तुम ऐसे स्वार्थी और आत्मकेंद्रित बन मत जियो कि दूसरों के सुख-दुख से कोई लेना-देना न रह जाए और संवेदनहीनता की पराकाष्ठा छू लो। कवि का मानना है कि लोगों को एक दूसरे को सहारा देना चाहिए और सहायता करनी चाहिए ताकि उनका रुका काम पूरा हो सके। वह सभी को दान देना चाहता है।
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. ‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने मनुष्य के किस कृत्य को अनर्थ कहा है और क्यों ?
उत्तर- कवि ने अपनी कविता “मनुष्यता” में लोगों को बताने का प्रयास किया कि हर मनुष्य आपस में ई है। इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि एक ही ईश्वर सभी को जन्म देता है। पुराणों में भी इस बात का सबूत मिलता है कि सृष्टि का एकमात्र रचनाकारवही है, जो सृष्टि का जन्मजात पिता है। फिर मनुष्य और देवता में कुछ अंतर है।

वह अपने कामों से है, लेकिन सभी एक हैं क्योंकि उनमें एक ही ईश्वर या आत्मा का अंश है। यह सब जानने के बाद भी कोई व्यक्ति अपने भाई की मदद न करे और उसकी पीड़ा न दूर करे तो वह सबसे बड़ी बेवकूफ हैं। इसका कारण यह है कि ऐसा न करके व्यक्ति अपनी मनुष्यता को कलंकित करता है।

प्रश्न 2. ‘मनुष्यता’ कविता की वर्तमान में प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- मनुष्यता कविता हमें वास्तविक मनुष्य बनने की राह दिखाती है। इस कविता ने मनुष्य को हर मनुष्य को अपना भाई मानने, उनकी सेवा करने और एकता बनाए रखने की सीख दी है। कविता कहती है कि सच्चा मनुष्य वही है जो सभी को अपना समझते हुए दूसरों की भलाई के लिए जीता और मरता है।

वह दूसरों के साथ उदारता से व्यवहार करता है और मानवीय एकता को बढ़ावा देने के लिए निरंतर प्रयासरत रहता है। वह खुद उन्नति करता है और दूसरों को भी उन्नति करने की प्रेरणा देता है। वर्तमान समय में इस कविता और भी प्रासंगिक है क्योंकि स्वार्थ, अहंकार, लोभ, ईर्ष्या, छल-कपट और अन्य बुराइयों का व्यापक प्रसार हो रहा है, जो मनुष्य-मनुष्य में दूरी बढ़ाते हैं।

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प्रश्न 3. ‘मनुष्यता’ कविता में वर्णित उशीनर, दधीचि और कर्ण के उन कार्यों का उल्लेख कीजिए जिससे वे मनुष्य को मनुष्यता की राह दिखा गए।
उत्तर- इस प्रकार उशीनर, दधीचि और कर्ण ने “मनुष्यता” कविता में काम किया:

उशीनर – राजा शिवि उनका दूसरा नाम है। राजा उशीनर ने एक कबूतर को बचाने के लिए अपने शरीर से एक माँस बाज को अपने वजन के बराबर दे दिया। इस तरह दयालुता का अनुकरणीय काम किया।

दधीचि – दानवों को युद्ध में हराने और मानवता की रक्षा करने के लिए महर्षि दधीचि ने अपनी हड्डियों को दान देकर बज्र बनाया।

कर्ण – कर्ण एक बहुत दानी, वीर और साहसी योद्धा था। उसने अपना कवच-कुंडल ब्राह्मण वेशधारी श्रीकृष्ण और इंद्र को दिया। बाद में, यह दान उसके लिए घातक था।
इस तरह, महान लोगों ने मानवता को बचाया, त्याग और परोपकार करके लोगों को मानवता की राह दिखाई।

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CHAPTER 1 – साखी

CHAPTER 2 – पद

CHAPTER 3 – दोहे

CHAPTER 4 – मनुष्यता

CHAPTER 5 – पर्वत प्रदेश में पावस

CHAPTER 6 – मधुर-मधुर मेरे दीपक जल

CHAPTER 7 – तोप

CHAPTER 8 – कर चले हम फ़िदा

CHAPTER 9 – आत्मत्राण

CHAPTER 10 – बड़े भाई साहब

CHAPTER 11 –  डायरी का एक पन्ना

CHAPTER 12 – तताँरा-वामीरो कथा

CHAPTER 13 – तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र

CHAPTER 14 – गिरगिट

CHAPTER 15 – अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले

CHAPTER 16 – पतझर में टूटी पत्तियाँ

CHAPTER 17 – कारतूस

 

 

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