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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 16

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 16

पतझर में टूटी पत्तियाँ

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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

मौखिक

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-

प्रश्न 1. शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग क्यों होता है?
उत्तर- शुद्ध सोना से गिन्नी का सोना अलग होता है, क्योंकि गिन्नी का ताँबा शुद्ध सोने से अधिक मज़बूत और चमकता है। शुद्ध सोने में कुछ भी नहीं मिलता।

प्रश्न 2. प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट किसे कहते हैं?
उत्तर- जो आदर्शों को व्यवहारिकता के साथ प्रस्तुत करते हैं, उन्हें प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट कहते हैं। इनका समाज पर गलत प्रभाव पड़ता है क्योंकि वे अक्सर मूल्यों से हट जाते हैं और केवल अपने फायदे के बारे में सोचते हैं। इसलिए समाज का स्तर गिरता है।

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प्रश्न 3. पाठ के संदर्भ में शुद्ध आदर्श क्या है?
उत्तर- पाठ के संदर्भ में शुद्ध आदर्श अर्थहीन हैं। शुद्ध आदर्श ही महत्वपूर्ण हैं। शुद्ध सोने में ताँबे का मिश्रण उपयोगी है, इसके विपरीत शुद्ध सोना शुद्ध आदर्श है।

प्रश्न 4. लेखक ने जापानियों के दिमाग में ‘स्पीड’ का इंजन लगने की बात क्यों कही है?
उत्तर- वह दूसरों से मुकाबला कर सकता है अगर उसके मन में स्पीड का इंजन होता है। जापान के लोग अमेरिका से किसी भी तरीके से आगे निकलना चाहते हैं, इसलिए वे बहुत प्रतिस्पर्धी हैं। इसलिए उनका मस्तैिष्क हमेशा परेशान रहता है। इसलिए वे मानसिक रोगों से पीड़ित होते हैं। लेखक ने कहा कि जापानियों को तीव्र गति से आगे बढ़ना चाहिए, इसलिए उनके दिमाग में “स्पीड” का इंजन लगाना चाहिए। महीने का काम एक दिन में पूरा करना चाहते हैं, इसलिए उनका दिमाग भी तेज गति से चलने वाले इंजन की तरह सोचता है।

प्रश्न 5. जापानी में चाय पीने की विधि को क्या कहते हैं?
उत्तर- जापानी में चाय पीना चा-नो-यू कहते हैं।

प्रश्न 6. जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, उस स्थान की क्या विशेषता है?
उत्तर- जापान में चाय पिलाने का स्थान पर्णकुटी की तरह सजा देता है। वहाँ बहुत शांत है। इस छोटे से स्थान में प्राकृतिक ढंग से सजे हुए तीन लोग चाय पी सकते हैं। यहाँ बहुत आराम है।

लिखित

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(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1. शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से और व्यावहारिकता की तुलना ताँबे से क्यों की गई है?
उत्तर- आदर्शवादिता स्पष्ट रूप से जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है। व्यावहारिकता की सार्थकता तब होती है जब आदर्शों को भी व्यावहारिकता में शामिल किया जाए। आदर्श समाज के मूल्यों की उत्पत्ति हैं। हमेशा लाभ-हानि की दृष्टि से व्यवहारवादी काम करते हैं। जीवन में आदर्श के साथ-साथ व्यावहारिकता भी आवश्यक है, क्योंकि व्यावहारिकता के समावेश से आदर्श सुंदर और मजबूत होते हैं।

प्रश्न 2. चाजीन ने कौन-सी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग से पूरी कीं?
उत्तर- चाजीन ने टी-सेरेमनी से जुड़ी हर बात को गरिमापूर्ण ढंग से किया। एक पर्णकुटी में यह सेरेमनी समाप्त हो गई। चाजीन ने अतिथियों को उठाकर उनका स्वागत किया, आराम से अँगीठी सुलगाई, चायदानी रखी, दूसरे कमरे से चाय के बर्तन लाया, उन्हें तौलिए से पोंछा और चाय को बर्तनों में डाला, आदि की सभी क्रियाएँ बड़े ही आराम से, अच्छे और सरल ढंग से की।

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प्रश्न 3. ‘टी-सेरेमनी में कितने आदमियों को प्रवेश दिया जाता था और क्यों?
उत्तर- टी-सेरेमनी में केवल तीन पुरुष हैं। शांति बनाए रखने के लिए ऐसा होता है।

प्रश्न 4. चाय पीने के बाद लेखक ने स्वयं में क्या परिवर्तन महसूस किया?
उत्तर- चाय पीने के बाद लेखक का मन मंद हो गया। जैसे-जैसे उसका दिमाग चलना बंद हो गया हो, उसे सन्नाटे की आवाजें भी सुनाई देने लगीं। उसे लगता था कि वह अनंत काल से जीवित है। वह वर्तमान जीवन में जी रहा हो, भूत और भविष्य का विचार नहीं करता हो। वह क्षण उसे खुशी देने लगा।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-

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प्रश्न 1. गांधी जी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी; उदाहरण सहित इस बात की पुष्टि कीजिए।
उत्तर- गांधीजी ने वास्तव में अद्भुत नेतृत्व क्षमता दिखाई दी। वे व्यावहारिकता, कीमत और कीमत जानते थे। वे आदर्शों को कभी भी व्यावहारिकता के स्तर पर नहीं उतारते थे; बल्कि, वे आदर्शों पर व्यावहारिकता को चलाते थे। वे ताँबे में सोना नहीं, सोने में ताँबा मिलाकर उसकी कीमत बढ़ाते थे। गांधीजी ने समाज को सत्य और अहिंसा जैसे अनन्त मूल्यों का पाठ पढ़ाया और सत्याग्रह, भारत छोड़ो, असहयोग और दांडी मार्च जैसे आंदोलन का नेतृत्व किया। गांधी जी के नेतृत्व से आश्वस्त भारतीयों ने उन्हें पूरा सहयोग दिया। इस अद्भुत क्षमता के कारण ही गांधी ने देश को स्वतंत्र बनाया था।

प्रश्न 2. आपके विचार से कौन-से ऐसे मूल्य हैं जो शाश्वत हैं? वर्तमान समय में इन मूल्यों की प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- आज व्यावहारिकता के स्तर पर आदर्शों का पालन नितांत आवश्यक है। व्यक्तित्व के लिए आदर्श और व्यवहार का संतुलन आवश्यक है। कथनी और करनी में अंतर ने समाज को मूल्यों से हटाकर स्वार्थ और लालच की ओर धकेल दिया है। सत्य, अहिंसा और परोपकार शाश्वत मूल्य हैं। शाश्वत मूल्य पुराने होते हैं, आज भी महत्वपूर्ण होते हैं

और भविष्य में भी फायदेमंद होते हैं। हर समय ये समान रहे। इन पर युग, स्थान या वर्ष का कोई प्रभाव नहीं था।
इन सनातन मूल्यों का महत्व आज भी जारी है। सत्य और अहिंसा के बिना देश का कल्याण संभव नहीं है। शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए परोपकार, त्याग, एकता, भाईचारा और देशप्रेम की भावना होनी चाहिए। ये मूल्य अनन्त रहते हैं।

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प्रश्न 3. अपने जीवन की किसी ऐसी घटना का उल्लेख कीजिए जब

  1. शुद्ध आदर्श से आपको हानि-लाभ हुआ हो।
  2. शुद्ध आदर्श में व्यावहारिकता का पुट देने से लाभ हुआ हो।

उत्तर- विद्यार्थी अपने अनुभव से इस प्रश्न का उत्तर लिखें।

प्रश्न 4. शुद्ध सोने में ताँबे की मिलावट या ताँबे में सोना’, गांधी जी के आदर्श और व्यवहार के संदर्भ में यह बात किस तरह झलकती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- शुद्ध सोना आदर्शों का प्रतीक है, जबकि ताँबा व्यावहारिकता का प्रतीक है। गाँधी जी ने व्यावहारिकता को आदर्शों के स्तर तक उठाया, अर्थात् ताँबे में सोना मिलाया। वे नीचे से ऊपर उठाने की जगह ऊपर से गिरने की कोशिश करते थे। इसलिए उन्हें प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट भी कहा जाता था। वास्तव में, वे व्यावहारिकता से परिचित थे और लोगों की भावनाओं को जानते थे, इसलिए वे अपने अद्भुत आदर्श का पालन करने में सफल रहे और पूरे देश को अपने पीछे चलाने में सफल रहे।

प्रश्न 5. ‘गिरगिट’ कहानी में आपने समाज में व्याप्त अवसरानुसार अपने व्यवहार को पल-पल में बदल डालने की एक बानगी देखी। इस पाठ के अंश ‘गिन्नी का सोना’ के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए कि ‘आदर्शवादिता’ और ‘व्यावहारिकता’ इनमें से जीवन में किसका महत्त्व है?
उत्तर- ‘गिन्नी को सोना’ के पाठ से स्पष्ट होता है कि जीवन में आदर्शवादिता का ही अधिक महत्त्व है। व्यावहारिकता की सार्थकता तब होती है जब आदर्शों को भी व्यावहारिकता से जोड़ा जाए। आदर्श समाज में स्थायी मूल्यों का जन्मदाता हैं। व्यवहारवादी हमेशा लाभ-हानि को देखते हैं।

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प्रश्न 6. लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के क्या-क्या कारण बताए? आप इन कारणों से कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर- लेखक के मित्र ने बताया कि जापानियों ने अमरीका की आर्थिक प्रगति से मुकाबला करने के कारण अपने दैनिक जीवन की गति बढ़ा दी, जो मानसिक रोग का कारण है। यहाँ हर कोई दौड़ता है, नहीं चलता। वे एक दिन में एक महीने का काम पूरा करने की कोशिश करते हैं, जिससे वे शारीरिक और मानसिक रूप से बीमार होने लगे हैं। लेखक के विचार सही हैं क्योंकि मन और शरीर एक मशीन की तरह काम नहीं कर सकते, और यदि उन्हें ऐसा करने को मजबूर किया गया तो मानसिक संतुलन बिगड़ जाना निश्चित है।

प्रश्न 7. लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- इसका अर्थ है कि लेखक केवल वर्तमान सत्य कहते हैं। आज जीना आवश्यक है क्योंकि ऐसा करने से स्वास्थ्य ठीक रहता है और जीवन में सुधार होता है। यदि हम भूतकाल पर पछताते रहेंगे या भविष्य की योजनाएँ ही बनाते रहेंगे, तो दोनों बेमानी या निरर्थक हो जाएँगे। हम भूतकाल से सीख सकते हैं और भविष्य की योजनाओं को आज ही बना सकते हैं। गीता में भी भगवान कृष्ण ने कहा है कि वर्तमान में ही जीना चाहिए, ताकि लोग तनाव से दूर रहकर स्वस्थ और खुशहाल जीवन जी सकें।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-

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प्रश्न 1. समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है तो वह आदर्शवादी लोगों का ही दिया हुआ है।
उतर- इसका अर्थ है कि शाश्वत मूल्य समाज में हैं, तो वे आदर्शवादी लोगों की देन हैं। हमारे कई प्रेरणा स्रोत हैं, जैसे कि गांधी जी की अहिंसा और सत्याग्रह की शिक्षाएं, राजा हरीशचंद्र की सत्यवादिता और भगतसिंह की शहादत। हम इनके गुणों को अपनाते हैं और उनके दिखाए मार्ग पर चलते हैं।

प्रश्न 2. जब व्यावहारिकता का बखान होने लगता है तब ‘प्रैक्टिकल आइडियालिस्टों’ के जीवन से आदर्श धीरे-धीरे पीछे हटने लगते हैं और उनकी त्यावहारिक सूझ-बूझ ही आगे आने लगती है।
उतर- आदर्शों पर व्यावहारिकता हावी होने लगती है जब आदर्शों को भूल जाते हैं और व्यावहारिकता को महत्व देते हैं। “प्रैक्टिकल आइडियालिस्टक” लोगों के जीवन में स्वार्थ और लाभ-हानि की भावना प्रकट होती है। “प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट” एक व्यक्ति है

जिसमें आदर्श और व्यवहार का संतुलन होता है, लेकिन आज की दुनिया में इस शब्द को इतना महत्त्व दिया जाता है कि उसकी आदर्शवादी विचारधारा केवल व्यावहारिकता के रूप में दिखाई देती है। आदर्श व्यवहार के उस स्तर पर जाकर अपनी गुणवत्ता खो देता है और धीरे-धीरे मूल व्यवहार के हाथों समाप्त हो जाता है।

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प्रश्न 3. हमारे जीका की रफ्तार बढ़ गई है। यहाँ कोई चलता नहीं बल्कि दौड़ता है। कोई बोलता नहीं, बकता है। हम जब अकेले पड़ते हैं तब अपने आपसे लगातार बड़बड़ाते रहते हैं।
उतर- जापान में लोग चलते नहीं, बल्कि दौड़ते हैं क्योंकि उनका जीवन बहुत तेज हो गया है। जापानी लोग अकेले रहते हुए बकवास करते हैं और अपने आप से बातें करते रहते हैं।

प्रश्न 4. अभी क्रियाएँ इतनी गरिमापूर्ण ढंग से कीं कि उसकी हर भंगिमा से लगता था मानो जयजयवंती के सुर गूंज रहे हों।
उतर- लेखक अपने दोस्तों के साथ जापान की “टी-सेरेमनी” में गया, जहां चाजीन ने उनका हाथ झुकाकर स्वागत किया। लेखक को लगता है कि वहाँ बहुत शांत है। लेखक को लगता है कि वहाँ सभी चीजें बहुत सम्मानपूर्वक की गईं। मन प्रसन्न हुआ जब चाजीन ने लेखक और उसके दोस्तों को अँगीठी जलाकर, चायदानी रखकर, बर्तन लगाकर, उन्हें तौलिए से पोंछकर, चाय डालकर स्वागत किया। लेखक को यह देखकर गुस्सा आया। उस जगह की गरिमा देखकर लगता था कि जयजयवंती राग गूंज रहा है।
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भाषा अध्ययन

प्रश्न 1. नीचे दिए गए शब्दों का वाक्य में प्रयोग कीजिए-
व्यावहारिकता, आदर्श, सूझबूझ, विलक्षण, शाश्वत
उतर-
शब्द – वाक्य प्रयोग
व्यावहारिकता – सिद्धांत और व्यावहारिकता के मेल से व्यक्ति का व्यवहार अच्छा बन जाता है।
आदर्श – गांधी जी अपने आदर्श बनाए रखते थे।
सूझबूझ – सूझबूझ से काम करने पर मुश्किल आसान हो जाती है।
विलक्षण – सुभाषचंद्र बोस विलक्षण प्रतिभा के धनी थे।
शाश्वत – प्रकृति परिवर्तनशील है, यह शाश्वत नियम है।

प्रश्न 2. लाभ-हानि’ का विग्रह इस प्रकार होगा-लाभ और हानि
यहाँ द्वंद्व समास है जिसमें दोनों पद प्रधान होते हैं। दोनों पदों के बीच योजक शब्द का लोप करने के लिए योजक चिह्न लगाया जाता है। नीचे दिए गए द्वंद्व समास का विग्रह कीजिए-

  1. माता-पिता = ……..
  2. पाप-पुण्य = …….
  3. सुख-दुख = ………
  4. रात-दिन = ……….
  5. अन्न-जल = ……….
  6. घर-बाहर = ………..
  7. देश-विदेश = ………..

उत्तर-

  1. माता-पिता = माता और पिता
  2. पाप-पुण्य = पाप और पुण्य
  3. सुख-दुख = सुख और दुख
  4. रात-दिन = रात और दिन
  5. अन्न-जल = अन्न और जल
  6. घर-बाहर = घर और बाहर
  7. देश-विदेश = देश और विदेश

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प्रश्न 3. नीचे दिए गए विशेषण शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए-

  1. सफल = ………
  2. विलक्षण = ………….
  3. व्यावहारिक = …………………
  4. सजग = ………..
  5. आदर्शवादी = ……….
  6. शुद्ध = ………….

उत्तर-

  1. सफल = सफलता
  2. विलक्षण = विलक्षणता
  3. व्यावहारिक = व्यावहारिकता
  4. सजग = सजगता
  5. आदर्शवादी = आदर्शवादिता
  6. शुद्ध = शुद्धता

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प्रश्न 4. नीचे दिए गए वाक्यों में रेखांकित अंश पर ध्यान दीजिए और शब्द के अर्थ को समझिए-
(क) शुद्ध सोना अलग है।
(ख) बहुत रात हो गई अब हमें सोना चाहिए।

ऊपर दिए गए वाक्यों में सोना” का क्या अर्थ है? पहले वाक्य में ‘सोना” का अर्थ है धातु ‘स्वर्ण’। दूसरे वाक्य में ‘सोना’ को अर्थ है ‘सोना’ नामक क्रिया। अलग-अलग संदर्भो में ये शब्द अलग अर्थ देते हैं अथवा एक शब्द के कई अर्थ होते हैं। ऐसे शब्द अनेकार्थी शब्द कहलाते हैं। नीचे दिए गए शब्दों के भिन्न-भिन्न अर्थ स्पष्ट करने के लिए उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
उत्तर, कर, अंक, नग
उत्तर-
उत्तर- सड़क की उत्तर दिशा में डाकखाना है।
मुझे इस प्रश्न का उत्तर नहीं मालूम है।
कर – हमें आय कर चुका कर देश की प्रगति में योगदान देना चाहिए।
अध्यापक को दखते ही मैंने कर बद्ध प्रणाम किया।

अंक – माँ ने सोते बच्चे को अंक में उठा लिया।
एक अंक की कुल 4 संख्याएँ हैं।
नग – हिमालय को नग राज कहा जाता है।
उसके घर में कीमती नग जड़ा है।

प्रश्न 5. नीचे दिए गए वाक्यों को संयुक्त वाक्य में बदलकर लिखिए-
(क) 1. अँगीठी सुलगायी।
2. उस पर चायदानी रखी।
(ख) 1. चाय तैयार हुई।
2. उसने वह प्यालों में भरी।
(ग) 1. बगल के कमरे से जाकर कुछ बरतन ले आया।
2. तौलिये से बरतन साफ़ किए।
उत्तर-
(क) अँगीठी सुलगायी और उस पर चायदानी रखी।
(ख) चाय तैयार हुई और उसने वह प्यालों में भरी।
(ग) बगल के कमरे से जाकर कुछ बरतन ले आया और तौलिये से बरतन साफ़ किए।

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प्रश्न 6. नीचे दिए गए वाक्यों से मिश्र वाक्य बनाइए-
(क) 1. चाय पीने की यह एक विधि है।
2. जापानी में चा-नो-यू कहते हैं।
(ख) 1. बाहर बेढब-सा एक मिट्टी का बरतन था।
2. उसमें पानी भरा हुआ था।
(ग) 1. चाय तैयार हुई।
2. उसने वह प्यालों में भरी।
3. फिर वे प्याले हमारे सामने रख दिए।
उत्तर-
(क) चाय पीने की यह एक विधि है जिसे जापानी में चा-नो-यू कहते हैं।
(ख) उस बर्तन में पानी भरा था जो बाहर बेढब-सा मिट्टी का बना था।
(ग) जब चाय तैयार हुई तब वह प्यालों में भर कर हमारे सामने रखी गई।

योग्यता विस्तार

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प्रश्न 1. गांधी जी के आदर्शों पर आधारित पुस्तकें पढ़िए; जैसे- महात्मा गांधी द्वारा रचित ‘सत्य के प्रयोग’ और गिरिराज किशोर द्वारा रचित उपन्यास ‘गिरमिटिया’।
उत्तर- विद्यार्थी खुद करें।

प्रश्न 2. पाठ में वर्णित ‘टी-सेरेमनी’ का शब्द चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर- “टी-सेरेमनी” शब्द चित्र एक छह मंजिली इमारत की छत पर एक झोपड़ीनुमा कमरा है, जिसकी दीवारें दफ़्ती की हैं। फ़र्श चटाई से ढका हुआ है। यहाँ बहुत शांति है। बाहर एक बड़े से बेडौल मिट्टी के बरतन में पानी रखा है। यहाँ लोग हाथ-पाँव धोकर अंदर जाते हैं। भित्र बैठा चाजीन झुके हुए सलाम करता है।

बैठने की जगह की ओर इशारा करता है और चाय बनाने के लिए एक अँगीठी जलाता है। उसके बर्तन सुंदर और साफ हैं। चायदानी में उबलते पानी की आवाज इतनी साफ सुनाई देती है कि वातावरण इतना शांत है। वह धीरे-धीरे चाय बनाता है। वह सिर्फ दो या तीन घूट चाय एक कप में डालता है, जिसे लोग धीरे-धीरे चुस्कियों लेकर लगभग डेढ़ घंटे में पी लेते हैं।
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परियोजना कार्य

प्रश्न 1. भारत के नक्शे पर वे स्थान अंकित कीजिए जहाँ चाय की पैदावार होती है। इन स्थानों से संबंधित भौगोलिक स्थितियों और अलग-अलग जगह की चाय की क्या विशेषताएँ हैं, इनका पता लगाइए और परियोजना पुस्तिका में लिखिए।
उत्तर- सामग्री
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अन्य पाठेतर हल प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

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प्रश्न 1. शुद्ध सोने का उपयोग कम किया जाता है, क्यों?
उत्तर- शुद्ध सोना किसी तरह की मिलावट नहीं करता। इसमें कोई और धातु नहीं मिली है। यह हल्का, लचीला नहीं है। इसकी रोशनी भी कम है। इससे आभूषण नहीं बनाए जाते हैं और यह 24 कैरेट शुद्ध है।

प्रश्न 2. गिन्नी के सोने का अधिक उपयोग क्यों किया जाता है?
उत्तर- शुद्ध सोने से गिन्नी का सोना अलग होता है। थोड़ी मात्रा में ताँबे की मिलावट इसे मज़बूत और चमकदार बनाती है। 22 कैरेट शुद्धता है। इसका प्रयोग आभूषण बनाने में होता है।

प्रश्न 3. प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट’ किन्हें कहा गया है?
उत्तर- प्रयोगात्मक आइडियालस्टि वे हैं, जो अपने विचारों में व्यावहारिकता का मेल करते हैं और इसे चलाकर दिखाते हैं। वे सिद्धांतों और वास्तविकता का समन्वय करके चलते हैं।

प्रश्न 4. गांधी जी प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट थे। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- गांधी जी जानते थे कि सच्चे आदर्शों को व्यवहार में नहीं उतारा जा सकता, लेकिन उनकी दृष्टि आदर्श से नहीं हटी। उन्हें अपने मूल्यों से समझौता नहीं करना पड़ा, बल्कि व्यावहारिक आदर्शवाद को अपनाया और मर्यादित और श्रेष्ठ जीवन बिताया।

प्रश्न 5. व्यवहारवादी लोगों की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर- व्यवहारवादी लोग उन्नति और लाभ-हानि दोनों को अधिक महत्व देते हैं। वे मानवीय मूल्यों और आदर्शों पर ध्यान नहीं देते। यही नहीं, वे समाज के अन्य सदस्यों की उन्नति या कल्याण की चिंता नहीं करते। नुकसान-लाभ की गणना उनका व्यवहार प्रभावित करती है।

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प्रश्न 6. समाज के उत्थान में आदर्शवादियों का योगदान स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- हर समाज में स्थायी मूल्य होते हैं। इनमें सत्य, त्याग, प्रेम, सहभागिता और परोपकार सबसे महत्वपूर्ण हैं। मात्र आदर्शवादी लोग अपने व्यवहार से इन मूल्यों को संरक्षित करते हैं और आने वाली पीढ़ी को उन्हें हस्तांतरित करते हैं, जिससे ये मूल्य समाज में जीवित रहते हैं।

प्रश्न 7. ‘व्यवहारवाद’ समाज के लिए किस प्रकार हानिकारी है?
उत्तर- ‘व्यवहारवाद’ का अर्थ है “लाभ-हानि” की गणना करके कार्य करना। इसका दूसरा नाम अवसरवादिता है। जब लोग लाभ, उन्नति और भलाई के लिए अपने मूल्यों को त्याग देते हैं, तो मानवीय मूल्यों का पतन होता है। ऐसा व्यवहारवाद समाज को पतन की ओर ले जाता है।

प्रश्न 8. लेखक के मित्र के अनुसार जापानी किस रोग से पीड़ित हैं और क्यों?
उत्तर- लेखक के दोस्तों ने बताया कि जापानी लोग मानसिक बीमारी से पीड़ित हैं। इसका कारण कई बातें हैं, जैसे उनकी अनंत आकांक्षाएँ, उनको पूरा करने के लिए लगातार मेहनत, एक दिन में महीने का काम करने की उत्सुकता और अमेरिका जैसे विकसित देश से प्रतिस्पर्धा।

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प्रश्न 9. ‘टी-सेरेमनी’ की चाय का लेखक पर क्या असर हुआ?
उत्तर- ‘टी-सेरेमनी’ में चाय पीते समय लेखक को दस-पंद्रह मिनट की उलझन हुई। फिर उसका दिमाग धीमी होने लगा। जो कुछ समय में बंद हो गया। अब सन्नाटा भी उसे सुनाई दे रहा था। उसे लगता था कि वह अनंत काल में है।

प्रश्न 10. ‘जीना इसी का नाम है’ लेखक ने ऐसा किस स्थिति को कहा है?
उत्तर- “यह नाम जीना है” लेखक ने ऐसा कहा जब वह भूतकाल और भविष्य को मिथ्या समझकर भूल गया। उसने अपने वर्तमान को सही समझा। टी-सेरेमनी में चाय पीते-पीते उसके दिमाग से दोनों काले सपने उड़ गए। वह अनंत काल जितने बड़े वर्तमान में जी रहा था।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

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प्रश्न 1. भारत में भी लोगों की जिंदगी की गतिशीलता में खूब वृद्धि हुई है। इसके कारण और परिणाम का उल्लेख ‘झेन की देन’ पाठ के आधार पर कीजिए।
उत्तर- भारतीयों की जिंदगी में गतिशीलता ने भौतिकवादी सोच, अत्यधिक सुख-सुविधाओं की इच्छा और विकसित बनने की इच्छा को जन्म दिया है। भारत विकसित हो रहा है। विकास के लिए भागते दिख रहे हैं, चाहे शहर हो या गाँव। विकसित देशों की तरह, लोगों की जीवनशैली में बदलाव आया है। लोगों को भी अपनों के लिए समय नहीं है।

यहाँ के लोगों की हालत जापानियों की तरह हो रही है, जो बोलने की जगह दौड़ रहे हैं, चलने की जगह बक रहे हैं, और इससे भी दो कदम आगे बढ़कर मनोरोगी होने लगे हैं।

प्रश्न 2. ‘झेन की देन’ पाठ से आपको क्या संदेश मिलता है?
उत्तर- ‘झेन की देन’ का अध्ययन हमें व्यस्त जीवनशैली और उसके बुरे परिणामों से अवगत कराता है। पाठ में जापानियों की व्यस्त दिनचर्या से उत्पन्न मनोरोगों की चर्चा करते हुए वहाँ की “टी-सेरेमनी” के माध्यम से मानसिक तनाव से छुटकारा पाने का उपाय बताया गया है। इससे बचने का एक उपाय है शांत रहना। भविष्य की कल्पनाओं और बीते दिनों को भूलकर वर्तमान में जीना और इसका भरपूर आनंद लेना। शांति और आराम से जीवन जीने के लिए, इसके मन से चिंता, तनाव और अधिक काम की बोझ हटाना चाहिए।

 

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CHAPTER 1 – साखी

CHAPTER 2 – पद

CHAPTER 3 – दोहे

CHAPTER 4 – मनुष्यता

CHAPTER 5 – पर्वत प्रदेश में पावस

CHAPTER 6 – मधुर-मधुर मेरे दीपक जल

CHAPTER 7 – तोप

CHAPTER 8 – कर चले हम फ़िदा

CHAPTER 9 – आत्मत्राण

CHAPTER 10 – बड़े भाई साहब

CHAPTER 11 –  डायरी का एक पन्ना

CHAPTER 12 – तताँरा-वामीरो कथा

CHAPTER 13 – तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र

CHAPTER 14 – गिरगिट

CHAPTER 15 – अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले

CHAPTER 16 – पतझर में टूटी पत्तियाँ

CHAPTER 17 – कारतूस

 

 

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