NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 13
तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
मौखिक
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-
प्रश्न 1. ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को कौन-कौन से पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है?
उत्तर-
- राष्ट्रपति स्वर्णपदक से सम्मानित किया गया था।
- बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा सर्वश्रेष्ठ फिल्म को पुरस्का
- यह भी मास्को फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कृत हुआ।
प्रश्न 2. शैलेंद्र ने कितनी फ़िल्में बनाई?
उत्तर- शैलेन्द्र ने अपने जीवन में केवल एक ही फिल्म बनाई। उनकी पहली फ़िल्म थी “तीसरी कसम”।
प्रश्न 3. राजकपूर द्वारा निर्देशित कुछ फ़िल्मों के नाम बताइए।
उत्तर-
- ‘मेरा नाम जोकर’
- ‘अजन्ता’
- ‘मैं और मेरा दोस्त’
- ‘सत्यम् शिवम् सुंदरम्’
- ‘संगम’
- ‘प्रेमरोग’
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प्रश्न 4.‘तीसरी कसम’ फ़िल्म के नायक व नायिकाओं के नाम बताइए और फ़िल्म में इन्होंने किन पात्रों का अभिनय किया है?
उत्तर- फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ में राजकपूर और वहीदा रहमान ने अभिनय किया था। राजकपूर ने हीरामन गाड़ीवान का अभिनय किया है और वहीदा रहमान ने नौटंकी अभिनेत्री हीराबाई का।
प्रश्न 5. फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ का निर्माण किसने किया था?
उत्तर- शैलेन्द्र कलाकार ने
प्रश्न 6. राजकपूर ने ‘मेरा नाम जोकर’ के निर्माण के समय किस बात की कल्पना भी नहीं की थी?
उत्तर- राजकपूर ने “मेरा नाम जोकर” बनाते समय भी नहीं सोचा था कि फिल्म का पहला हिस्सा बनाने में ही छह साल का समय लग जाएगा।
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प्रश्न 7. राजकपूर की किस बात पर शैलेंद्र का चेहरा मुरझा गया?
उत्तर- राजकपूर ने फिल्म ‘तीसरी कसम’ की कहानी सुनकर पारिश्रमिक बढ़ाने का प्रस्ताव दिया। इस बात पर शैलेन्द्र का चेहरा मुरझा गया।
प्रश्न 8. फ़िल्म समीक्षक राजकपूर को किस तरह का कलाकार मानते थे?
उत्तर- फ़िल्म समीक्षकों ने राजकपूर को एक आँखों से बात करनेवाला अभिनेता और कला-मर्मज्ञ बताया।
लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
प्रश्न 1. ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को ‘सैल्यूलाइड पर लिखी कविता’ क्यों कहा गया है?
उत्तर- ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म का नामकरण इसलिए हुआ है कि यह हिंदी साहित्य की एक बहुत मार्मिक कृति को सैल्यूलाइड पर सार्थकता से उतारा है, अर्थात् कैमरे की रील में उतारकर चित्र पर दिखाना; इसलिए यह सैल्यूलाइड की जगह फ़िल्म थी।
प्रश्न 2. ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को खरीददार क्यों नहीं मिल रहे थे?
उत्तर- इस फिल्म में किसी भी अनावश्यक मसाले नहीं डाले गए जो फिल्म का बजट बनाने के लिए आवश्यक थे। फ़िल्म वितरक उसे खरीदने से इनकार कर दिया क्योंकि वे उसके साहित्यिक महत्त्व और गौरव को नहीं समझ सकते थे।
प्रश्न 3. शैलेंद्र के अनुसार कलाकार का कर्तव्य क्या है?
उत्तर- शैलेंद्र कहते हैं कि कलाकार का दायित्व है कि वह ग्राहक की आवश्यकताओं को बेहतर बनाने की कोशिश करे। दर्शकों की आवश्यकताओं की आड़ में उथलापन या सस्तापन नहीं होना चाहिए। उसके अभिनय में शांत नदी का बहाव और समुद्र की गहराई की छाप छोड़ने की क्षमता होनी चाहिए।
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प्रश्न 4. फ़िल्मों में त्रासद स्थितियों का चित्रांकन ग्लोरिफाई क्यों कर दिया जाता है?
उत्तर- फ़िल्मों में त्रासद परिस्थितियों का चित्रांकन ग्लोरिफाई किया जाता है ताकि फिल्म निर्माता दर्शकों का भावनात्मक शोषण कर सकें। निर्माता-निर्देशक हर दृश्य को दर्शकों की दिलचस्पी का बहाना बनाकर उसे प्रसिद्ध करते हैं, जिससे वे एक-एक पैसा वसूल सकें और सफलता पा सकें।
प्रश्न 5. ‘शैलेंद्र ने राजकपूर की भावनाओं को शब्द दिए हैं’- इस कथन से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- “शैलेन्द्र ने राजकपूर की भावनाओं को शब्द दिए हैं” का अर्थ है कि राजकपूर को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शब्दों का अभाव था, जिसकी कुशलतापूर्वक और सौंदर्यमयी ढंग से कवि हृदय शैलेन्द्र ने पूर्ति की है। शैलेंद्र ने शब्दों के माध्यम से राजकपूर की भावना को व्यक्त किया। राजकपूर अपनी भावनाओं को आँखों से व्यक्त करने में कुशल थे। शैलेन्द्र ने उन भावों को गीतों में उतारने का काम किया।
प्रश्न 6. लेखक ने राजकपूर को एशिया का सबसे बड़ा शोमैन कहा है। शोमैन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- शोमैन एक प्रसिद्ध प्रतिनिधि और आकर्षक व्यक्तित्व है। ऐसा व्यक्ति जो सब जगह अपने कलागुणों, व्यक्तित्व तथा आकर्षण के कारण प्रसिद्ध हो। राजकपूर अपने समय में बहुत बड़े फ़िल्मकार थे। उनके निर्देशन में एशिया में कई फ़िल्में प्रदर्शित हुईं।
उनकी फ़िल्में सभी शोमैन मानदंडों को पूरा करती थीं, इसलिए उन्हें एशिया का सबसे बड़ा शोमैन कहा गया है। वे बहुत लोकप्रिय अभिनेता थे और उनका जीवंत अभिनय दर्शकों के दिल पर छा गया। उनकी अभिनय क्षमता से प्रभावित होकर दर्शक उनकी फ़िल्म देखते और उसे सराहते थे। राजकपूर भारत के बाहर भी लोकप्रिय था। रूस में नेहरू के बाद राजकपूर को सबसे अधिक जानने वाले व्यक्ति थे।
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प्रश्न 7. फ़िल्म ‘श्री 420′ के गीत ‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ पर संगीतकार जयकिशन ने आपत्ति क्यों की?
उत्तर- संगीतकार जयकिशन ने गीत, “रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ” पर आपत्ति व्यक्त की क्योंकि उनका विचार था कि दर्शक सिर्फ चार दिशाओं को समझ सकते हैं, लेकिन दस दिशाओं का गहरा ज्ञान नहीं होगा।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
प्रश्न 1. राजकपूर द्वारा फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह करने पर भी शैलेंद्र ने यह फ़िल्म क्यों बनाई?
उत्तर- राजकपूर शैलेंद्र के मित्र और अनुभवी फिल्म निर्माता थे। वास्तविक दोस्त होने के नाते, उन्होंने शैलेन्द्र को फ़िल्म की असफलता के खतरों से भी आगाह किया था, लेकिन शैलेन्द्र ने फिर भी तीसरी कसम फिल्म बनाई, क्योंकि उनके मन में इस फिल्म को बनाने की तीव्र इच्छा थी। वे एक भावुक कवि थे, इसलिए वे इस फ़िल्म में अपनी भावनाओं को व्यक्त करना चाहते थे। उन्होंने यह फिल्म बनाई क्योंकि उन्हें धन की भूख नहीं थी, बल्कि आत्म-संतुष्टि की भूख थी।
प्रश्न 2. ‘तीसरी कसम’ में राजकपूर का महिमामय व्यक्तित्व किस तरह हीरामन की आत्मा में उतर गया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- राजकपूर एक उत्कृष्ट अभिनेता थे। फ़िल्म के पात्रों के अनुरूप अपने आप को ढाल लेना उनके लिए एक अच्छी बात थी। राजकपूर ने “तीसरी कसम” बनाने के समय एशिया के सबसे बड़े शोमैन बन गए। राजकपूर का अभिनय तीसरी कसम में चरम सीमा पर था।
उन्हें एक साधारण, ग्रामीण चालक के रूप में प्रस्तुत किया गया था। उस ग्रामीण गाड़ीवान हीरामन के साथ वे एकजुट हो गए। इस फ़िल्म में राजकपूर ने शुद्ध देहाती जैसा अभिनय किया , वह विशिष्ट है। राजकपूर ने हीराबाई की भावनाओं को बहुत सुंदर ढंग से चित्रित किया है—एक गाड़ीवान की सरलता, नौटंकी की स्त्री में अपनापन खोजना, हीराबाई की बाली पर रीझना, उसकी भोली सूरत पर न्योछावर होना और हीराबाई की तनिक-सी उपेक्षा पर अपने अस्तित्व से जूझना।
फ़िल्म में राजकपूर अभिनय नहीं करते, बल्कि वे हीरामन की तरह दिखते हैं। तीसरी कसम में राजकपूर का पूरा व्यक्तित्व हीरामन की आत्मा में उतर गया है।
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प्रश्न 3. लेखक ने ऐसा क्यों लिखा है कि ‘तीसरी कसम’ ने साहित्य-रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है?
उत्तर- वास्तव में, “तीसरी कसम” ने साहित्यिक लेखन को पूरी तरह से समझा है। ‘मारे गए गुलफाम’ फणीश्वरनाथ रेणु की रचना पर आधारित है। मूल कहानी को इस फिल्म में बदल नहीं दिया गया। फिल्म की कहानी बहुत बारीकी से प्रस्तुत की गई थी। पूरी तरह से सुरक्षित था साहित्य की मूल आत्मा।
प्रश्न 4. शैलेंद्र के गीतों की क्या विशेषता है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- शैलेन्द्र कवि और सफल गायक थे। उनके गीतों में कई विशेषताएँ हैं। सरल भाषा में होने के बावजूद उनके गीतों में बहुत बड़ा अर्थ था। वे एक आदर्शवादी भावुक कवि थे, और उनके गीतों में भी यही स्वभाव झलकता था। अपने गीतों में उन्होंने झूठ की कोई जगह नहीं दी।
उनके गीतों में भाव प्रधान थे और वे आम लोगों के जीवन से जुड़े थे। उनके गीतों में संघर्ष और करुणा दोनों हैं। गीतों में उन्होंने लोगों को दुखों से घबराकर रुकने के बजाय निरंतर आगे बढ़ने का संदेश दिया है। उनके गीतों में शांत बहाव और समुद्र की गहराई थी। एक शब्द भी उनके गीत में भावनाओं को व्यक्त कर सकता है।
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प्रश्न 5. फ़िल्म निर्माता के रूप में शैलेंद्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- फ़िल्म निर्माता के रूप में शैलेंद्र की कई विशेषताएँ हैं, लेकिन निम्नलिखित उनमें से सबसे महत्वपूर्ण हैं:
- ‘तीसरी कसम’, फ़िल्म निर्माता शैलेंद्र ने जीवन के आदर्शवाद और भावनाओं को इतने अच्छे से चित्रित किया कि यह सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म घोषित हुई और कई पुरस्कारों से सम्मानित हुई।
- राजकपूर की उत्कृष्ट भूमिका को शब्द देकर बहुत प्रभावशाली ढंग से दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया है।
- अपने कवि हृदय की पूर्णता और जीवन की मार्मिकता को बड़ी ही विनम्रता से उजागर किया है।
प्रश्न 6.शैलेंद्र के निजी जीवन की छाप उनकी फ़िल्म में झलकती है-कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- शैलेन्द्र एक आदर्शवादी कवि थे, जो बहुत संवेदनशील और भावुक थे। शैलेन्द्र ने अपने जीवनकाल में तीसरी कसम नामक एक फिल्म बनाई। यह फिल्म बहुत भावुक और भावुक थी। उनकी फिल्म में भी शांत नदी का बहाव और समुद्र की गहराई दिखाई देती हैं। हीरामन, ‘तीसरी कसम’ का नायक, एक सरल, भोला-भाला युवा है जो सिर्फ दिल की बात सुनता है, दिमाग की नहीं। वह प्रेम के सिवा कुछ नहीं मानता। शैलेन्द्र भी ऐसा ही व्यक्तित्व था।
,हीरामन को धन की चकाचौंध से दूर रहनेवाले एक देवता के रूप में चित्रित किया गया है।
शैलेन्द्र स्वयं भी धन और सफलता से दूर थे। “तीसरी कसम” में दुख को भी जीवन की साधारण परिस्थितियों में दिखाया गया है। शैलेन्द्र भी अपने जीवन में मुश्किलों का सामना करते थे। दुःख से घबराकर वे उससे नहीं भागते थे। इस तरह, शैलेंद्र की फ़िल्म में उनके व्यक्तिगत जीवन का प्रभाव स्पष्ट है।
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प्रश्न 7. लेखक के इस कथन से कि ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म कोई सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था, आप कहाँ तक सहमत हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- हम लेखक के इस कथन से पूरी तरह सहमत हैं कि फ़िल्म “तीसरी कसम” केवल कवियों के दिलों को प्रभावित कर सकती थी, क्योंकि वह भावुकता से भरपूर है। वह करुणा और सादगी से भरपूर है, और उसके विचारों में शांत नदी और समुद्र की गहराई की तरह है। ऐसे ही विचारों से भरी हुई फिल्म “तीसरी कसम” में दर्शकों की आवश्यकताओं पर ध्यान दिया गया है और उनकी गलतियों को सुधारने की भी कोशिश की गई है।
(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
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प्रश्न 1. …. वह तो एक आदर्शवादी भावुक कवि था, जिसे अपार संपत्ति और यश तक की इतनी कामना नहीं थी जितनी आत्मसंतुष्टि के सुख की अभिलाषा थी।
उत्तर- इसका अर्थ है कि शैलेन्द्र एक आदर्शवादी भावुक हृदय कवि थे। उन्होंने आत्मतुष्टि, आत्मसंतोष, मानसिक शांति, मानसिक सांत्वना आदि की ओर अधिक ध्यान नहीं दिया, बल्कि धन और लोकप्रियता की ओर। ईश्वर की कृपा से ही इन गुणों को समझ सकते हैं। शैलेंद्र ने कहा कि इन्हीं अलौकिक अनुभूतियों से परिपूर्ण होने के कारण वे आत्मतुष्टि चाहते थे।
प्रश्न 2. उनका यह दृढ़ मंतव्य था कि दर्शकों की रुचि की आड़ में हमें उथलेपन को उन पर नहीं थोपना चाहिए। कलाकार का यह कर्तव्य भी है कि वह उपभोक्ता की रुचियों का परिष्कार करने का प्रयत्न करे।
उत्तर- महान आदर्शवादी गीतकार व कवि हृदय शैलेंद्र ने कभी भी रुचियों की आड़ में दर्शकों पर खराब गीत थोपने की कोशिश नहीं की। आज की दुनिया में फिल्में मनोरंजन का एक प्रभावी साधन हैं। फिल्म समाज के हर वर्ग के लोग देखते हैं और प्रभावित होते हैं। आजकल जिस प्रकार की फ़िल्म बनाई जाती है
उनमें से अधिकांश को पूरा परिवार एक साथ बैठकर देखने की क्षमता नहीं होती। फ़िल्म निर्माताओं की तरह, वे दर्शकों की रुचि को बहाना बनाकर निम्नस्तरीय साहित्य या कला नहीं बनाना चाहते थे। उन्हें लगता था कि कलाकार का काम है कि दर्शकों की रुचि को परिष्कार करें। उनका उद्देश्य दर्शकों को नवीन विचारों और मूल्यों से परिचित करना था।
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प्रश्न 3. व्यथा आदमी को पराजित नहीं करती, उसे आगे बढ़ने का संदेश देती है।
उत्तर- इसका मतलब यह है कि दर्द, पीड़ा, दुख आदि किसी व्यक्ति को कमजोर या हतोत्साहित करते हैं, लेकिन वे उसे पराजित नहीं करते, बल्कि उसे मजबूत करते हैं और उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। हर दर्द आदमी को जीवन की नई शिक्षा देता है। सुख व्यथा से ही पैदा होता है, इसलिए दुःख के बाद आने वाला सुख ज्यादा अच्छा होता है।
प्रश्न 4. दरअसल इस फ़िल्म की संवेदना किसी दो से चार बनाने वाले की समझ से परे है।
उत्तर- फ़िल्म “तीसरी कसम” गहरी भावनात्मक थी। अच्छी रुचियों वाले संस्कारी और कलात्मक लोग ही उसे समझ-सराह सकते थे। कवि शैलेंद्र की फ़िल्म बनाने का उद्देश्य पैसा या सफलता नहीं था। इस फ़िल्म के माध्यम से वे अपने अंदर के कलाकारों को खुश करना चाहते थे। शैलेंद्र ने इस फ़िल्म को बनाने के पीछे की भावना को सिर्फ पैसा कमाने की इच्छा से नहीं समझा। इस फिल्म की गहरी भावना उनकी समझ से परे है।
प्रश्न 5. उनके गीत भाव-प्रवण थे- दुरूह नहीं।
उत्तर- इसका अर्थ यह है कि शैलेन्द्र ने जनता के लिए लिखे गए गीत भावनाओं से ओत-प्रोत थे, उनमें गहराई थी, और उनकी भाषा सरल, सरल और सरल थी. इसलिए आज भी उनके गीत गुनगुनाए जाते हैं। मानों ने हृदय को छूकर अवसाद को दूर किया लगता है।
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भाषा अध्ययन
प्रश्न 1. पाठ में आए ‘से’ के विभिन्न प्रयोगों से वाक्य की संरचना को समझिए।
- राजकपूर ने एक अच्छे और सच्चे मित्र की हैसियत से शैलेंद्र को फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह भी किया।
- रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ।
- फ़िल्म इंडस्ट्री में रहते हुए भी वहाँ के तौर-तरीकों से नावाकिफ़ थे।
- दरअसल इस फ़िल्म की संवेदना किसी दो से चार बनाने के गणित जानने वाले की समझ से परे थी।
- शैलेंद्र राजकपूर की इस याराना दोस्ती से परिचित तो थे।
उत्तर- विद्यार्थी अपने आप को समझें।
प्रश्न 2. इस पाठ में आए निम्नलिखित वाक्यों की संरचना पर ध्यान दीजिए-
- ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म नहीं, सैल्यूलाइड पर लिखी कविता थी।
- उन्होंने ऐसी फ़िल्म बनाई थी जिसे सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था।
- फ़िल्म कब आई, कब चली गई, मालूम ही नहीं पड़ा।
- खालिस देहाती भुच्चे गाड़ीवान जो सिर्फ दिल की जुबान समझता है, दिमाग की नहीं।
उत्तर- विद्यार्थियों को वाक्यों की संरचना पर ध्यान देना चाहिए।
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प्रश्न 3. पाठ में आए निम्नलिखित मुहावरों से वाक्य बनाइए-
चेहरा मुरझाना, चक्कर खा जाना, दो से चार बनाना, आँखों से बोलना
उत्तर- मुहावरा – वाक्य प्रयोग
चेहरा मुरझाना – आतंकियों ने जैसे ही अपने एरिया कमांडर की मौत की बात सुनी उनके चेहरे मुरझा गए।
चक्कर खा जाना – क्लर्क के घर एक करोड़ की नकदी पाकर सी०बी०आई० अधिकारी भी चक्कर खा गए।
दो से चार बनाना – आई०पी०एल० दो से चार बनाने का खेल सिद्ध हो रहा है।
आँखों से बोलना – मीना कुमारी का अभिनय देखकर लगता था कि वे आँखों से बोल रही हैं।
प्रश्न 4. निम्नलिखित शब्दों के हिंदी पर्याय दीजिए-
- शिद्दत – …….
- याराना – ……….
- बमुश्किल – ………
- खालिस – ………..
- नावाकिफ़ – ……..
- यकीन – …………
- हावी – …………
- रेशा – ……….
उत्तर-
- शिद्दत – श्रद्धा
- याराना – मित्रता
- बमुश्किल – कठिनाई से
- खालिस – शुद्ध
- नावाकिफ़ – अनभिज्ञ
- यकीन – विश्वास
- हावी – आक्रामक
- रेशा – पतले-पतले धागे
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प्रश्न 5. निम्नलिखित संधि विच्छेद कीजिए-
- चित्रांकन – ……… + ………
- सर्वोत्कृष्ट – ………. + ………..
- चर्मोत्कर्ष – ………… + ………….
- रूपांतरण – ……….. + ………….
- घनानंद – ………… + …………..
उत्तर-
- चित्रांकन – चित्र + अंकन
- सर्वोत्कृष्ट – सर्व + उत्कर्ष
- चर्मोत्कर्ष – चर्म + उत्कर्ष
- रूपांतरण – रूप + अंतरण
- घनानंद – घन + आनंद
प्रश्न 6. निम्नलिखित का समास विग्रह कीजिए और समास का नाम भी लिखिए-
(क) कला-मर्मज्ञ
(ख) लोकप्रिय
(ग) राष्ट्रपति
उत्तर-
विग्रह | समास का नाम | |
(क) कला-मर्मज्ञ | कला का मर्मज्ञ | संबंध तत्पुरुष समास |
(ख) लोकप्रिय | लोक में प्रिय | अधिकरण तत्पुरुष समास |
(ग) राष्ट्रपति | राष्ट्र का पति | संबंध तत्पुरुष समास |
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योग्यता विस्तार
प्रश्न 1. फणीश्वरनाथ रेणु की किस कहानी पर ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म आधारित है, जानकारी प्राप्त कीजिए और मूल रचना पढ़िए।
उत्तर- विद्यार्थी खुद पढ़ें।
प्रश्न 2. समाचार पत्रों में फ़िल्मों की समीक्षा दी जाती है। किन्हीं तीन फ़िल्मों की समीक्षा पढ़िए और तीसरी कसम’ फ़िल्म को देखकर इस फ़िल्म की समीक्षा स्वयं लिखने का प्रयास कीजिए।
उत्तर- विद्यार्थी खुद पढ़ें।
परियोजना कार्य
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प्रश्न 1. फ़िल्मों के संदर्भ में आपने अकसर यह सुना होगा-‘जो बात पहले की फ़िल्मों में थी, वह अब कहाँ’। वतर्ममान दौर की फ़िल्मों और पहले की फ़िल्मों में क्या समानता और अंतर है? कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर- विद्यार्थी खुद करें।
प्रश्न 2. ‘तीसरी कसम’ जैसी और भी फ़िल्में हैं, जो किसी न किसी भाषा की साहित्यिक रचना पर बनी हैं। ऐसी फ़िल्मों की सूची निम्नांकित प्रपत्र के आधार पर तैयार करें।
उत्तर-
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प्रश्न 3. लोकगीत हमें अपनी संस्कृति से जोड़ते हैं। तीसरी कसम’ फ़िल्म में लोकगीतों का प्रयोग किया गया है। आप भी अपने क्षेत्र के प्रचलित दो-तीन लोकगीतों को एकत्र कर परियोजना कॉपी पर लिखिए।
उत्तर- विद्यार्थी खुद करें।
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अन्य पाठेतर हल प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. संगम की सफलता से उत्साहित राजकपूर ने कन-सा कदम उठाया?
उत्तर- संगम फ़िल्म ने राजकपूर को अद्भुत सफलता दिलाई। इससे उत्साहित होकर उन्होंने एक साथ चार फिल्में बनाने की घोषणा की। अजंता, मेरा नाम जोकर, मैं और मेरा दोस्त और सत्यम् शिवम् सुंदरम् फिल्में थीं।
प्रश्न 2. राजकपूर ने शैलेंद्र के साथ अपनी मित्रता ? निर्वाह कैसे किया?
उत्तर- तीसरी कसम, राजकपूर के दोस्त शैलेंद्र की फिल्म थी, जिसमें वह पूरी तरह से लगे हुए थे। उन्होंने इस काम के बदले कोई पारिश्रमिक की उम्मीद नहीं की। वे सिर्फ एक रुपया एडवांस लेकर काम करते थे और दोस्ती करते थे।
प्रश्न 3. एक निर्माता के रूप में बड़े व्यावसायिक सा- युवा भी चकर क्यों खा जाते हैं?
उत्तर- जब एक निर्माता एक फ़िल्म बनाता है, उसका लक्ष्य होता है कि वह अधिक से अधिक लोगों को पसंद आए और उसे बार-बार देखें, ताकि वह अच्छी आय कमाए। वे हर उपाय करते हैं लेकिन फिल्म नहीं चलती और वे चक्कर खा जाते हैं।
प्रश्न 4. राजकपूर ने शैलेंद्र के साथ किस तरह यारउन्ना मस्ती की ?
उत्तर- गीतकार शैलेंद्र ने अपने दोस्त राजकपूर से फ़िल्म में काम करने का अनुरोध किया, लेकिन उन्होंने कहा, “निकालो मेरा पूरा एडवांस।”फिर हँसते हुए एक रुपया एडवांस माँगा। राजकपूर ने शैलेन्द्र से एडवांस माँगा और दोनों ने याराना मस्ती की।
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प्रश्न 5. शैलेंद्र ने अच्छी फ़िल्म बनाने के लिए दवा किया?
उत्तर- शैलेंद्र ने अच्छी फ़िल्म बनाने के लिए राजकपूर और वहीदा रहमान को लिया। इसके अलावा, उन्होंने फणीश्वर नाथ रेणु की दर्दनाक कहानी, “तीसरी कसम, उर्फ मारे गए गुलफाम” की पटकथा लिखी और इसे सैल्यूलाइड पर सफलतापूर्वक उतारा।
प्रश्न 6. ‘तीसरी कसम’ जैसी फ़िल्म बनाने के पीछे शैलेंद्र की मंशा क्या थी?
उत्तर- शैलेन्द्र एक गीतकार थे जो एक कवि दिल था। तीसरी कसम बनाने का उनका उद्देश्य न था यश या धन। उन्होंने सिर्फ अपनी खुशी के लिए फ़िल्म बनाई।
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प्रश्न 7. शैलेंद्र द्वारा बनाई गई फ़िल्म चल रहीं, इसके कारण क्या थे?
उत्तर- तीसरी कसम एक भाव-प्रणव फ़िल्म थी। यह भावनात्मक और भावनात्मक दृष्टिकोण लोगों से अलग है। ऐसे लोगों का लक्ष्य अधिकाधिक लाभ प्राप्त करना होता है। फ़िल्म ने तीसरी कसम में रची-बसी दया को दिखाया। विषय था। ऐसी फ़िल्म को कम खरीददार और वितरक मिलने से यह चल नहीं सकी।
प्रश्न 8. ‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी नयाँ’ इस पंक्ति के रेखांकित अंश पर किसे आपत्ति थी और क्यों ?
उत्तर- संगीतकार शंकर जयकिशन ने पंक्ति ‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ के दसों दिशाओं पर आपत्ति व्यक्त की। उनका विचार था कि आम आदमी सिर्फ चार दिशाएँ जानता था, दस नहीं। उन्होंने ऐसा किया क्योंकि उन्होंने सोचा कि इससे फ़िल्म और गीत की लोकप्रियता प्रभावित होगी।
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. ‘तीसरी कसम’ में राजकपूर और वहीदा रहमान का अभिनय लाजवाब था। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- राजकपूर ने फ़िल्म “तीसरी कसम” में काम करने के लिए हामी भरी थी, जब वे अभिनय के लिए प्रसिद्ध और लोकप्रिय हो गए थे। इस फिल्म में राजकपूर ने एक देहाती गाड़ीवान की भूमिका निभाई थी जिसका नाम हीरामन था। राजकपूर की सशक्त अभिनय की वजह से हीरामन में राजकपूर नहीं दिखाई दिया। हीराबाई का किरदार निभाने वाली वहीदा रहमान, जो छींट की सस्ती साड़ी में लिपटी हुई थी, का अभिनय भी बेहतरीन था। उन्होंने आँखों से नहीं दिखाया, बल्कि एक शक्तिशाली अभिव्यक्ति दी जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता था।
इसलिए हम कह सकते हैं कि राजकपूर और वहीदा रहमान की फ़िल्म तीसरी कसम में बेहतरीन अभिनय था।
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प्रश्न 2. हिंदी फ़िल्म जगत में एक सार्थक और उद्देश्यपरक फ़िल्म बनाना कठिन और जोखिम का काम है।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- तीसरी कसम, प्रसिद्ध गीतकार शैलेंद्र ने बनाया, हिंदी सिनेमा जगत में एक सार्थक और उद्देश्यपूर्ण फिल्म है। राजकपूर और वहीदा रहमान जैसे प्रसिद्ध कलाकारों ने इस फ़िल्म में उत्कृष्ट अभिनय किया था। उस समय महान संगीतकार शंकर जयकिशन का संगीत बहुत लोकप्रिय था। फ़िल्म के प्रदर्शन से पहले ही सभी गाने बहुत लोकप्रिय हो गए थे। इसके बाद भी इस महान फिल्म को कोई नहीं खरीदता था या इसे बेचता था। ऐसी फ़िल्में बनाना खतरनाक है क्योंकि यह फ़िल्म कब आई और कब चली गई पता नहीं था।
प्रश्न 3. ‘राजकपूर जिन्हें समीक्षक और कलामर्मज्ञ आँखों से बात करने वाला मानते हैं’ के आधार पर राजकपूर के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- हिंदी फ़िल्म जगत में राजकपूर एक मशहूर अभिनेता थे। अभिनय की दुनिया में आने के बाद, उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे अपने अभिनय से निरंतर नई ऊंचाईयाँ छूते रहे और सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते गए। संगम फ़िल्म की अद्भुत सफलता से उत्साहित होकर उन्होंने एक साथ चार फिल्मों का निर्माण करने का फैसला किया।
ये फिल्में भी सफल रही। उन्हें राजकपूर की फिल्म “तीसरी कसम” के बाद एशिया के शोमैन के रूप में जाना गया। इनके व्यक्तित्व ने लोगों को प्रेरित किया था। वे आँखों से बात करने वाले कलाकार थे, जो हर भूमिका में जीवन देते थे। वे अपने रोल में इतना खो जाते थे कि राजकपूर उनमें कहीं नहीं दिखाई देता था।
वे एक सच्चे दोस्त और मित्र भी थे, जिन्होंने शैलेंद्र की फिल्म में काम किया, मात्र एक रुपया पारिश्रमिक लेकर और दोस्ती का उदाहरण दिया।
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CHAPTER 5 – पर्वत प्रदेश में पावस
CHAPTER 6 – मधुर-मधुर मेरे दीपक जल
CHAPTER 11 – डायरी का एक पन्ना
CHAPTER 12 – तताँरा-वामीरो कथा
CHAPTER 13 – तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र
CHAPTER 15 – अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले
CHAPTER 16 – पतझर में टूटी पत्तियाँ
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